भारत में हिन्दू धर्मावलंबियों के बीच सर्वाधिक प्रतिष्ठित व्रत कथा के रूप में भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप की सत्यनारायण व्रत कथा सर्वाधिक प्रसिद्ध है। विष्णु की पूजा कई रूपों में की जाती है। उनमें से उनका सत्यनारायण स्वरूप इस कथा में व्यक्त हुआ है। विद्वानों की मान्यता के अनुसार स्कंद पुराण के रेवाखंड में इस कथा का उल्लेख मिलता है। इसके मूल पाठ में पाठांतर से करीब १७० श्लोक संस्कृत भाषा में उपलब्ध हैं, जो पांच अध्यायों में बंटे हुए हैं। इस कथा के दो प्रमुख विषय हैं जिनमें एक है संकल्प की विस्मृति और दूसरा है प्रसाद का अपमान। व्रत कथा के विभिन्न अध्यायों में छोटी कहानियों के माध्यम से बताया गया है कि सत्य का पालन न करने पर किस तरह की परेशानियां आती है। अत: जीवन में सत्य व्रत का पालन पूरी निष्ठा और सुदृढ़ता के साथ करना चाहिए। ऐसा न करने पर भगवान न केवल नाराज होते हैं अपितु दंड स्वरूप संपत्ति और बंधु-बांधवों के सुख से वंचित भी कर देते हैं। इस अर्थ में यह कथा लोक में सच्चाई की प्रतिष्ठा का लोकप्रिय और सर्वमान्य धार्मिक साहित्य है। प्राय: पूर्णमासी को इस कथा का परिवार में वाचन किया जाता है। अन्य पर्वों पर भी इस कथा को विधि विधान से करने का निर्देश है।
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