Skip to main content

Posts

चमत्कारी हैं हनुमान चालीसा की ये 5 चौपाइयां

हनुमान चालीसा से कौन परिचित नहीं है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हनुमान चालीसा बनी कैसी? तुलसीदास ने कहां से इसकी रचना की? दरअसल, हनुमानजी को समर्पित ये चौपाइयां उनके बचपन से जुड़ी हैं। हनुमानजी हिंदू धर्म ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि बचपन में जब हनुमानजी ने सूर्य को मुंह में रख लिया तब सूर्य को मुक्त कराने के लिए देवराज इंद्र ने हनुमानजी पर शस्त्र से प्रहार किया। इसके बाद हनुमान जी मूर्छित हो गए थे। देवताओं ने जिन मंत्रों और हनुमानजी की विशेषताओं को बताते हुए उन्हें शक्ति प्रदान की थी, उन्हीं मंत्रों के सार को गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा में वर्णित किया गया है। हनुमान चालीसा में चौपाइयां ही नहीं, बल्कि हनुमानजी के पराक्रम की विशेषताएं बताई गईं हैं। यही कारण है कि हनुमान चालीसा का नियमित पाठ किया जाए तो यह परम फलदायी सिद्ध होती है। वैसे, हनुमान चालीसा का वाचन मंगलवार या शनिवार को शुभ होता है। हम यहां हनुमान चालीसा की पांच चौपाइयों के बारे में बताएंगे, जिनका पाठ करने पर चमत्कारी फल मिल सकते हैं। ध्यान रहें, इनका पाठ करते समय उच्चारण की त्रुटि न करें। 1. भूत-पिशा
Recent posts

क्यों पवित्र और शुभ माना जाता है तुलसी का पौधा?

यमराज या यमदूत का नाम आते हैं मौत का डर सताने लगता है। हिंदू धर्म में यमराज को मृत्यु का देवता बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि जिस व्यक्ति की मृत्यु का समय आ जाता है, उसकी आत्मा को लेने के लिए यमराज या यमदूत आते हैं। यमराज आने का अर्थ है साक्षात मृत्यु का आना। मृत्यु के भय को समाप्त करने के लिए शास्त्रों में कई उपाय बताए गए हैं। इन्हीं उपायों में से एक है घर में तुलसी का पौधा लगाना। वेद-पुराण, शास्त्रों में तुलसी की महिमा बताई गई है कि - जिस व्यक्ति के घर में तुलसी का पौधा होता है, वह घर तीर्थ के समान है। वहां मृत्यु के देवता यमराज नहीं आते हैं। जो मनुष्य तुलसी की मंजरी से भगवान श्रीहरि की पूजा करता है, उसे फिर गर्भ में नहीं आना पड़ता यानी उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता है, पुन: धरती पर जन्म नहीं लेना पड़ता। इस श्लोक से स्पष्ट है कि तुलसी के पौधे को पवित्र और पूजनीय माना गया है। यहां यमराज या यमदूत से यही तात्पर्य है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होगा वहां रहने वाले लोगों का जीवन स्वर्ग के समान होगा। तुलसी के प्रभाव से घर में सभी सुख-सुविधा के साधन होंगे। किसी को भी मृत्यु

राजा हरिश्चंद्र सत्यवादी क्यों कहलाए?

सूर्यवंश के 48वें राजा हरिश्चंद्र अपनी सत्यनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी सत्य के प्रति निष्ठा उनके सैकड़ों साल बाद भी सत्य का प्रतीक बनी हुई है। इनका युग त्रैता माना जाता है। प्राय: सभी पौराणिक ग्रंथों में हरिश्चंद्र के सत्य व्रत की कथा पूरे रस और प्रभाव के साथ मिलती है। महाभारत के आदिपर्व के लोकपाल समाख्यान पर्व व श्रीमद्भागवत पुराण के संदर्भों के अनुसार हरिश्चंद्र त्रिशंकु के पुत्र थे। गीता प्रेस से प्रकाशित भक्त चरितांक में उपलब्ध संदर्भ के अनुसार विश्वामित्र ने तप के प्रभाव से हरिश्चंद्र से स्वप्न में उनका संपूर्ण राज्य दान में ले लिया। दूसरे दिन अयोध्या में जाकर विश्वामित्र ने हरिश्चंद्र से दान मांगा। हरिश्चंद्र के सत्य की पराकाष्ठा यह थी कि उन्होंने स्वप्न में जो दान किया था, उसे सच में निभाया और संपूर्ण राज्य विश्वामित्र को दान कर दिया। हरिश्चंद्र काशी में जाकर बस गए। उन्हें श्मशान में चांडाल का कार्य करना पड़ा। दरिद्रता का असर उनकी पत्नी शैब्या और पुत्र रोहिताश्व पर भी हुआ। एक दिन सर्पदंश से रोहिताश्व की मृत्यु हो गई, तब अपने ही पुत्र के अंतिम संस्कार के हरिश्चंद्र शुल

श्रीयंत्र का क्या महत्व है?

श्रीयंत्र दो शब्दों का जोड़ है- श्री और यंत्र। स्पष्ट रूप से श्री शब्द लक्ष्मी के लिए उपयोग किया गया है। यह वेद में भी आया है अैार लक्ष्मी को ही संबोधित किया गया है। आगे चलकर देवताओं के एक विरुद के रूप में तथा देवताओं के साथ मानवों के लिए सम्मान सूचक विशेषण के रूप में भी श्री का उपयोग किया गया। यंत्र निर्माण प्राचीन है। ये धातु पत्र, भोज पत्र या मृत्तिका वेदी पर बनाए जाते रहे हैं। नृसिंहपूर्वतापनियोपनिषद् के दूसरे खंड में यंत्र बनाने के निर्देश हैं। कहा गया है इन्हें कंठ, भुजा या शिखा में पहनने से शक्ति मिलती है। इस तरह यंत्र अभिमंत्रित कर तैयार किए जाते हैं, जिसका उद्देश्य शांति, सफलता या मनोकामना को पूरा करना होता है। श्रीयंत्र लक्ष्मी का आह्वान कर तैयार किया जाता है। जिसका लक्ष्य यश, कीर्ति और संपदा के साथ सफलता प्राप्त करना बताया गया है। यह लोकप्रिय है और प्राय: वणिक श्रद्धालुओं के यहां पूजा में रखा जाता है। 

क्यों बनाई जाती है द्वार पर रंगोली?

त्योहारों पर, विशेष अवसरों पर या किसी उत्सव में घर के द्वार पर रंगोली सजाने की परंपरा है। कई महाराष्ट्रीयन परिवारों में रोजाना रंगोली सजाना नियम में शुमार है। कहते हैं यह घर में देवताओं और खासतौर पर लक्ष्मी के स्वागत में सजाई जाती है।  एक सवाल हमेशा मन में कौंधता है कि क्या लक्ष्मी या देवता आदि हमेशा ही दरवाजे से ही प्रवेश करते हैं, वे तो सर्वशक्तिमान होते हैं, सो उन्हें आम लोगों की तरह दरवाजे से आने की क्या आवश्यकता है। दरअसल यह प्रतीकात्मक है। इसके पीछे मनोवैज्ञानिक तथ्य और दार्शनिक जवाब छिपे हैं। हम दरवाजे पर रंगोली इसलिए सजाते हैं ताकि उससे केवल सकारात्मक ऊर्जा ही हमारे घर के भीतर प्रवेश करे। रंगोली के रंग और उसकी डिजाइन हमारे मनोभावों पर सकारात्मक असर डालती है, इससे हमें क्लेश और चिंता से उबरने और दूर रहने में सहायता मिलती है। ठीक ऐसा ही असर हमारे घर में आने वाले मेहमानों पर भी पड़ता है। जब भी कोई हमारे घर में आता है तो अलग-अलग मन:स्थिति में आता है। उसके मनोभाव अगर तीव्र हैं तो वह परोक्ष रूप से हमारे घर के वातावरण पर भी प्रभाव डालते हैं। रंगोली के रंग और आकृति ऐसे मनोभावों

शिवलिंग का पूजन करते समय जरूर ध्यान रखें ये बात, क्योंकि...

कहते हैं शिव भोले हैं और अपने भक्तों पर बहुत जल्दी प्रसन्न होकर उनके जीवन से परेशानियों को दूर करते हैं। शिवजी के पूजन के भी कुछ विधान हैं, जिनका पालन शास्त्रों के अनुसार जरूरी माना गया है और ऐसी मान्यता है कि यदि शिवजी कि शिवलिंग या शिव पूजन के समय कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो भोलेनाथ जल्दी प्रसन्न होते हैं। शिव पुराण के अनुसार शंखचूड नाम का महापराक्रमी दैत्य हुआ। शंखचूड दैत्यराज दंभ का पुत्र था। दैत्यराज दंभ को जब बहुत समय तक कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई तब उसने विष्णु के लिए घोर तप किया और तप से प्रसन्न होकर विष्णु प्रकट हुए। विष्णु ने वर मांगने के लिए कहा तब दंभ ने एक महापराक्रमी तीनों लोको के लिए अजेय पुत्र का वर मांगा और विष्णु तथास्तु बोलकर अंतध्र्यान हो गए। तब दंभ के यहां शंखचूड का जन्म हुआ और उसने पुष्कर में ब्रह्मा की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मा ने वर मांगने के लिए कहा और शंखचूड ने वर मांगा कि वो देवताओं के लिए अजेय हो जाए। ब्रह्मा ने तथास्तु बोला और उसे श्रीकृष्णकवच दिया फिर वे अंतध्र्यान हो गए। जाते-जाते ब्रह्मा ने शंखचूड को धर्मध्वज की कन्या

श्री सत्यनारायण व्रत कथा का क्या महत्व है?

भारत में हिन्दू धर्मावलंबियों के बीच सर्वाधिक प्रतिष्ठित व्रत कथा के रूप में भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप की सत्यनारायण व्रत कथा सर्वाधिक प्रसिद्ध है। विष्णु की पूजा कई रूपों में की जाती है। उनमें से उनका सत्यनारायण स्वरूप इस कथा में व्यक्त हुआ है। विद्वानों की मान्यता के अनुसार स्कंद पुराण के रेवाखंड में इस कथा का उल्लेख मिलता है। इसके मूल पाठ में पाठांतर से करीब १७० श्लोक संस्कृत भाषा में उपलब्ध हैं, जो पांच अध्यायों में बंटे हुए हैं। इस कथा के दो प्रमुख विषय हैं जिनमें एक है संकल्प की विस्मृति और दूसरा है प्रसाद का अपमान। व्रत कथा के विभिन्न अध्यायों में छोटी कहानियों के माध्यम से बताया गया है कि सत्य का पालन न करने पर किस तरह की परेशानियां आती है। अत: जीवन में सत्य व्रत का पालन पूरी निष्ठा और सुदृढ़ता के साथ करना चाहिए। ऐसा न करने पर भगवान न केवल नाराज होते  हैं अपितु दंड स्वरूप संपत्ति और बंधु-बांधवों के सुख से वंचित भी कर देते हैं। इस अर्थ में यह कथा लोक में सच्चाई की प्रतिष्ठा का लोकप्रिय और सर्वमान्य धार्मिक साहित्य है। प्राय: पूर्णमासी को इस कथा का परिवार में वाचन किया