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Showing posts from February, 2018

कश्मीरी सेब | लघु-कथा (कथा-कहानी)

                                                                     कल शाम को चौक में दो-चार जरूरी चीजें खरीदने गया था। पंजाबी मेवाफरोशों की दूकानें रास्ते ही में पड़ती हैं। एक दूकान पर बहुत अच्छे रंगदार,गुलाबी सेब सजे हुए नजर आये। जी ललचा उठा। आजकल शिक्षित समाज में विटामिन और प्रोटीन के शब्दों में विचार करने की प्रवृत्ति हो गई है। टमाटो को पहले कोई सेंत में भी न पूछता था। अब टमाटो भोजन का आवश्यक अंग बन गया है। गाजर भी पहले ग़रीबों के पेट भरने की चीज थी। अमीर लोग तो उसका हलवा ही खाते थे; मगर अब पता चला है कि गाजर में भी बहुत विटामिन हैं, इसलिए गाजर को भी मेजों पर स्थान मिलने लगा है। और सेब के विषय में तो यह कहा जाने लगा है कि एक सेब रोज खाइए तो आपको डाक्टरों की जरूरत न रहेगी। डाक्टर से बचने के लिए हम निमकौड़ी तक खाने को तैयार हो सकते हैं। सेब तो रस और स्वाद में अगर आम से बढक़र नहीं है तो घटकर भी नहीं। हाँ, बनारस के लंगड़े और लखनऊ के दसहरी और बम्बई के अल्फाँसो की बात दूसरी है। उनके टक्कर का फल तो संसार में दूसरा नहीं है मगर; मगर उनमें विटामिन और प्रोटीन है या नहीं, है तो काफी ह

ऐसा क्यों ?

कलश में आम के पत्ते ही क्यों रखते हैं? जल से सुशोभित पात्र कलश का कहा गया है। कालिका पुराण सहित अन्य पुराणों में कलश की कीर्ति गाई गई है। इसमें सभी देवताओं का वास माना गया है। हिंदू मान्यताओं में धार्मिक क्रियाओं से पूर्व कलश की स्थापना एक महत्वपूर्ण कर्म बताई गई है। इतने विशिष्ट कर्म में सौंदर्य को भी महत्व दिया गया है। यही कारण है कि कलश की सुंदरता में वृद्धि के लिए आम के पत्तों का उपयोग परंपरागत रूप से किया जाता है। आम का वृक्ष कामदेव का प्रतीक माना गया है जो सौंदर्य के देवता हैं। साथ ही काम अर्थात् इच्छाओं की पूर्ति करने वाले देव भी हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि आम के पत्ते चिकने , लंबे और सुंदर होते हैं। आम्र मंजरियों के सामीप्य के कारण इनमें मंद गंध भी होती है। हरे रंग के कारण ये समृद्धि के प्रतीक भी होते हैं। कलश में आम के अलावा पान के पत्ते भी बतौर सज्जा रखने की परंपरा है लेकिन पान पत्रों की तुलना में आम पत्र क
प्रसाद सीधे हाथ में ही क्यों लेना चाहिए? मंदिर हो या घर हिन्दू धर्म व संस्कृति के अनुसार भगवान को रोज भोग लगाकर प्रसाद बांटना पूजा का एक आवश्यक अंग माना जाता है। प्रसाद लेते समय हमेशा सीधे हाथ ऊपर रखना चाहिए और उसके नीचे उल्टा हाथ रखना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि उल्टे हाथ में प्रसाद लेना शुभ नहीं माना जाता है। लेकिन अधिकतर लोग इस बात पर ध्यान नहीं देते हैं क्योंकि उनकी सोच यही होती है कि यह एक तरह का अंधविश्वास है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इसका कारण क्या है? दरअसल, हिन्दू धर्म में यह माना जाता है कि हर शुभ काम, जिससे आप जल्द ही सकारात्मक परिणाम प्राप्त करना चाहते हैं वह काम सीधे हाथ से करना चाहिए। इसीलिए हर धार्मिक कार्य चाहे वह यज्ञ हो या दान-पुण्य सीधे हाथ से ही किया जाना चाहिए। जब हम हवन करते हैं और यज्ञ नारायण भगवान को आहुति दी जाती है तो वो सीधे हाथ से ही दी जाती है। दरअसल, सीधे हाथ को सकरात्मक ऊर्जा देने वाला माना जाता है। हमारी परंपरा के अनुसार प्रसाद को भगवान का आर्शीवाद माना जाता है। यही सोचकर हमारे पूर्वजों ने यह मान्यता बनाई कि प्रसाद सीधे हाथ में ही लेना चाहि
पूजा के बाद मुरझाए  फूलों और पूजा साम्रगी का क्या करें? हमारे यहां कोई उत्सव हो या अन्य कोई शुभ कार्य आयोजित किया जाता है। अक्सर पूजा के बाद सामग्री बच जाती है। जैसे ताजे फूलों को पूजा में हमेशा रखा जाता है। इसका कारण यह है कि फूल की सुगंध और सुन्दरता पूजन करने वाले के मन को सुन्दरता और शांति का एहसास दिलावाती है। ऐसा माना जाता है कि जब पूजा में इनका उपयोग किया जाता है , तो फूल अद्भुत ऊर्जा का सृजन पूरे घर में करते है और इससे घर में खुशियों का आगमन होता है। जबकि इसके विपरीत मुरझाये फूल मृत्यु के सूचक माने जाते हैं। फल व पूजा सुपारी , चावल , धान व अन्य पूजन सामग्री को भी ज्यादा समय तक पूजा के बाद घर में रखना शुभ नहीं माना जाता। पूजा की बची हुई सामग्री , जो उपयोगी हो उसे ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए और जो उपयोगी ना हो उसे तुरंत नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। इसके अलावा पितृ या भगवान को उपले पर लगाए गए भोग की राख को भी
क्या आप जानते हैं सप्ताह में सात दिन ही क्यों? हिन्दी पंचांग व इंग्लिश केलेंडर दोनों के अनुसार सप्ताह में सात दिन होते हैं। इंग्लिश कैलेंडर के अनुसार रविवार सप्ताह का आखिरी दिन होता है व हिन्दू केलेंडर के अनुसार पहला लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि हिन्दू धर्म शास्त्रों व ज्योतिष के अनुसार सप्ताह में सात दिन ही क्यों होते हैं ? दरअसल , ज्योतिष में ग्रहों की संख्या नौ मानी गई है , जो इस प्रकार हैं शनि , बृहस्पति , मंगल , शुक्र , बुध , चंद्र , सूर्य , राहु और केतु। इनमें से राहु और केतु को छाया ग्रह माना गया है। इसलिए इनका प्रभाव हमारे जीवन पर छाया के समान ही पड़ता है। इसलिए उस समय ज्योतिषाचार्यों ने ग्रहों के आधार पर सप्ताह में सात दिन निर्धारित किए लेकिन उसके बाद समस्या यह थी कि किस ग्रह का दिन कौन सा माना जाए तो ज्योतिषियों ने होरा के उदित होने के अनुसार दिनों को बांटा। एक दिन में 24 होरा होती है। हर होरा एक घंटे की होती है। दिन उदि
शादी से पहले क्यों किया जाता है कुंडली मिलान ? हिंदू धर्म शास्त्रों में हमारे सोलह संस्कार बताए गए हैं। इन संस्कारों में काफी महत्वपूर्ण है - विवाह संस्कार। शादी को व्यक्ति का दूसरा जन्म भी माना जाता है क्योंकि इसके बाद वर - वधूू सहित दोनों के परिवारों का जीवन पूरी तरह बदल जाता है , इसलिए विवाह के संबंध में कई महत्वपूर्ण सावधानियां रखना जरूरी है। विवाह के बाद वर - वधू का जीवन सुख और खुशियों से भरा हो यही कामना की जाती है। वर - वधू का जीवन सुखी बना रहे इसके लिए विवाह पूर्व लड़के और लड़की की कुंडली का मिलान कराया जाता है। किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी द्वारा भावी दंपत्ति की कुंडलियों से दोनों के गुण और दोष मिलाए जाते हैं। साथ ही दोनों की पत्रिका में ग्रहों की स्थिति को देखते हुए इनका वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा ? यह भी सटीक अंदाजा लगाया जाता है। यदि दोनों की कुंडलियों के आधार पर इनका जीवन सुखी प्रतीत होता है , तभी ज्योतिषी विवाह करने की बात क
झाड़ू पर क्यों नहीं लगाना चाहिए पैर?  घर में कई वस्तुएं होती हैं कुछ बहुत सामान्य रहती है। इनकी ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। ऐसी चीजों में से एक है झाड़ू। जब भी साफ-सफाई करना हो तभी झाड़ू का काम होता है। अन्यथा इसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता। शास्त्रों के अनुसार झाड़ू के संबंध कई महत्वपूर्ण बातें दी गई हैं। शास्त्रों के अनुसार झाड़ू को धन की देवी महालक्ष्मी का ही प्रतीक रूप माना जाता है। इसके पीछे एक वजह यह भी है कि झाड़ू ही हमारे घर से गरीबी रूपी कचरे को बाहर निकालती है और साफ-सफाई बनाए रखती है। घर यदि साफ और स्वच्छ रहेगा तो हमारे जीवन में धन संबंधी कई परेशानियां स्वत: ही दूर हो जाती हैं। प्राचीन परंपराओं को मानने वाले लोग आज भी झाड़ू पर पैर लगने के बाद उसे प्रणाम करते हैं, क्योंकि झाड़ू को लक्ष्मी का रूप माना जाता है। विद्वानों के अनुसार झाड़ू पर पैर लगने से महालक्ष्मी का अनादर होता है। झाड़ू घर का कचरा बाहर करती है और कचरे को दरिद्रता का प्रतीक माना जाता है। जिस घर में पूरी साफ-सफाई रहती है, वहां धन, संपत्ति और सुख-शांति रहती है। इसके विपरित जहां गंदगी रहती है, वहां दरिद्रता का व

एक अरबी कहानी

एक अरबी कहानी आदतें नस्लों का पता देती हैं,  एक बादशाह के दरबार में एक अजनबी नौकरी के लिए हाजिर हुआ। काबलियत पूछी गई, कहा, ‘सियासी हूँ।' (अरबी में सियासी, अक्ल से मामला हल करने वाले को कहते हैं।)  बादशाह के पास राजदरबारियों की भरमार थी, उसे खास ‘घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज' बना लिया। चंद दिनों बाद बादशाह ने उससे अपने सब से महंगे और अजीज घोड़े के बारे में पूछा, उसने कहा, ‘नस्ली नहीं है।' बादशाह को ताज्जुब हुआ, उसने जंगल से घोड़े की जानकारी वालों को बुलाकर जांच कराई.. उसने बताया, घोड़ा नस्ली है, लेकिन इसकी पैदायश पर इसकी मां मर गई थी, ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला है।  बादशाह ने अपने सियासी को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं? उसने कहा जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सिर नीचे करके, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुंह में लेकर सिर उठा लेता है। बादशाह उसकी परख से बहुत खुश हुआ, उसने सियासी के घर अनाज, घी, भुने और अच्छा मांस बतौर इनाम भिजवाया।  और उसे रानी के महल में तैनात कर दिया।  चंद दिनों बाद, बादशाह ने उससे बेगम के बारे में राय मां