श्रीयंत्र दो शब्दों का जोड़ है- श्री और यंत्र। स्पष्ट रूप से श्री शब्द लक्ष्मी के लिए उपयोग किया गया है। यह वेद में भी आया है अैार लक्ष्मी को ही संबोधित किया गया है। आगे चलकर देवताओं के एक विरुद के रूप में तथा देवताओं के साथ मानवों के लिए सम्मान सूचक विशेषण के रूप में भी श्री का उपयोग किया गया। यंत्र निर्माण प्राचीन है। ये धातु पत्र, भोज पत्र या मृत्तिका वेदी पर बनाए जाते रहे हैं। नृसिंहपूर्वतापनियोपनिषद् के दूसरे खंड में यंत्र बनाने के निर्देश हैं। कहा गया है इन्हें कंठ, भुजा या शिखा में पहनने से शक्ति मिलती है। इस तरह यंत्र अभिमंत्रित कर तैयार किए जाते हैं, जिसका उद्देश्य शांति, सफलता या मनोकामना को पूरा करना होता है। श्रीयंत्र लक्ष्मी का आह्वान कर तैयार किया जाता है। जिसका लक्ष्य यश, कीर्ति और संपदा के साथ सफलता प्राप्त करना बताया गया है। यह लोकप्रिय है और प्राय: वणिक श्रद्धालुओं के यहां पूजा में रखा जाता है।
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