हनुमान चालीसा से कौन परिचित नहीं है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हनुमान चालीसा बनी कैसी? तुलसीदास ने कहां से इसकी रचना की? दरअसल, हनुमानजी को समर्पित ये चौपाइयां उनके बचपन से जुड़ी हैं।
हनुमानजी |
हिंदू धर्म ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि बचपन में जब हनुमानजी ने सूर्य को मुंह में रख लिया तब सूर्य को मुक्त कराने के लिए देवराज इंद्र ने हनुमानजी पर शस्त्र से प्रहार किया।
इसके बाद हनुमान जी मूर्छित हो गए थे। देवताओं ने जिन मंत्रों और हनुमानजी की विशेषताओं को बताते हुए उन्हें शक्ति प्रदान की थी, उन्हीं मंत्रों के सार को गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा में वर्णित किया गया है।
हनुमान चालीसा में चौपाइयां ही नहीं, बल्कि हनुमानजी के पराक्रम की विशेषताएं बताई गईं हैं। यही कारण है कि हनुमान चालीसा का नियमित पाठ किया जाए तो यह परम फलदायी सिद्ध होती है। वैसे, हनुमान चालीसा का वाचन मंगलवार या शनिवार को शुभ होता है।
हम यहां हनुमान चालीसा की पांच चौपाइयों के बारे में बताएंगे, जिनका पाठ करने पर चमत्कारी फल मिल सकते हैं। ध्यान रहें, इनका पाठ करते समय उच्चारण की त्रुटि न करें।
1. भूत-पिशाच निकट नहीं आवे। महावीर जब नाम सुनावे।।
महत्व- यदि किसी व्यक्ति को किसी भी प्रकार का भय सताता है तो वह रोज सुबह और शाम में 108 बार इस चौपाई का जप करे। उसे सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिल जाएगी।
2. नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बल बीरा।।
महत्व- यदि व्यक्ति हमेशा बीमारियों से घिरा रहता है तो वह हर दिन सुबह-शाम 108 बार जप करके मंगलवार को हनुमान जी की मूर्ति के सामने पूरी हनुमान चालीसा के पाठ करता है तो उसे तमाम तरह के रोग से मुक्ति मिलती है।
3. अष्ट-सिद्धि नवनिधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।
महत्व- यदि कोई व्यक्ति रोज ब्रह्म मुहूर्त में आधा घंटा इन पंक्तियों का जप करे तो ऐसे जप से लाभ प्राप्त हो सकता है। उसे तमाम तरह की सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
4. विद्यावान गुनी अति चातुर। रामकाज करीबे को आतुर।।
महत्व- यदि विद्या और धन चाहिए तो इन पंक्तियों के जप से हनुमान जी का आशीर्वाद मिलता है। प्रतिदिन 108 बार ध्यानपूर्वक जप करने से व्यक्ति के धन सम्बंधित दुःख दूर हो जाते हैं।
5. भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्रजी के काज संवारे।।
महत्व- यदि कोई व्यक्ति शत्रुओं से परेशान हैं या व्यक्ति के कार्य नहीं बन पा रहे हैं तो हनुमान चालीसा की इस चौपाई का कम से कम 108 बार जप करना चाहिए।
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